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Showing posts from December, 2022

बृहस्पतिवार व्रत कथा

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                                                   बृहस्पतिवार व्रत कथा                                               प्राचीन काल में भारत में  एक राजा राज्य करता था वह बड़ा ही प्रतापी और दानी था।  वह नित्य मंदिर में दर्शन करने जाता था तथा ब्राम्हण और गुरु की सेवा करता था।  उसके द्वार से कोई भी निराश होक नहीं लौटता था।  वह प्रत्येक गुरूवार का व्रत और पूजन करता था।  वह गरीबो की सहायता करता था।  परन्तु यह सब बाते उसकी रानी को अच्छी नहीं लगती थी।  न वह व्रत करती और नहीं किसी को दान में एक पैसा भी किसी को देती थी तथा राजा को भी यह सब करने से मना किया करती थी।     एक समय राजा शिकार खेलने वन को गए हुए थे , घर पर रानी और दासी थीं।  उस समय गुरु बृहस्पति देव साधु का वेश धारण कर राजा के दरवाजे पर भिक्षा मांगने गए तथा भिक्षा मांगी तो रानी कहने लगी , हे साधु महाराज ! मैं इस दान और पुण्य से तंग आ गई हूँ।  मेरे से तो घर का ही कार्य समाप्त नहीं होता।  इस कार्य के लिए तो मेरे पति देव ही बहुत हैं।  आप ऐसी कृपा करें की यह सब धन नष्ट हो जावे तथा मैं आराम से रह सकूं।  साधु बोले -हे देवी! तुम तो बड़ी विचित

आरती श्री हनुमान जी की

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                                              🙏     आरती श्री हनुमान जी की 🙏                                                               आरती की जय हनुमान लला की।  दुष्ट दलन रघुनाथ कला की।     जाके बल से गिरिवर कापै।  रोग- दोष जेक निकट न आवे।।            अंजनी पुत्र महाबलदाई।  संतन के प्रभु सदा सहाई।           दे बीरा रघुनाथ पठाये।  लंका जारि सिया सुधि लाये।।    लंका सो कोट समुद्र सी खाई।  जात पवनसुत बार न लाइ।।        लंका जारि असुर संहारे।  सियाराम जी के कांज सँवारे।।        लक्ष्मण मूर्छित पड़े सकारे। आनि संजीवन प्राण उबारे।।     पैठि पाताल तोरि जम - कारे।  अहिरावन के भुजा उखारे।।           बायें भुजा असुर दल मारे।  दाहिने भुजा संतजन तारे।।     सुर नर मुनि आरती उतारें।  जय जय जय हनुमान उचारे।।         कंचन थाल कपूर लौ छाई।  आरति करत अंजना माई।।      जो हनुमान जी की आरती गावै।  बसि बैकुंठ परमपद पावै।       आरती की जय हनुमान लला की।  दुष्टदलन रघुनाथ कला की।                                                        🙏🙏   जय बजरंगबली की 🙏🙏

आरती कुंज बिहारी की

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                                                        🙏    आरती कुंज बिहारी की 🙏                                                                                                                             आरती कुंज बिहारी की , श्री गिरधर कृष्ण मुरारी की।                                              आरती कुंज बिहारी की , श्री गिरधर कृष्ण मुरारी की।                                                             🙏गले में बैजंती माला , बजावें मुरली मधुर बाला।                 श्रवण में कुण्डल झलकाला , नन्द के आनंद  नंदलाला।                 गगन सम अंग कांति  लाली , राधिका चमक रही आली।                                  रतन में ठाढ़े बनमाली ,                         भ्रमर सी अलक  , कस्तूरी  तिलक,               चंद्र सी झलक , ललित छवि श्यामा प्यारी की ,                              श्री गिरधर कृष्ण मुरारी की।                                  आरती कुंज बिहारी  ......... 🙏                                                                                     🙏  कनकमय मोर मुकुट बिलसै , देवता दर्शन

लाला हरदौल कथा

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                                                             लाला हरदौल कथा                                                                           यह एक सच्ची घटना है जो मध्य प्रदेश के मोरक्षा जिले की है।                मोरक्षा नरेश वीर सिंह देव बुंदेला के सबसे छोटे पुत्र हरदौल का जन्म सावन शुक्ल पूर्णिमा को सन १६०८ ,दिनांक २७ जुलाई को हुआ था।  हरदौल के जन्म के कुछ दिनों के बाद  उनके माता की मृत्यु  गई।  तब हरदौल का पालन -पोषण बड़े भाई जुखार सिंह की पत्नी चम्पावती ने किया।                         सन 1628 में हरदौल  विवाह दुर्गापुर (रतिया ) के दीवान लाखन सिंह परवार  हिमांचल कुंवरी के साथ हुआ था। हरदौल के 1630 में एक पुत्र का जन्म हुआ नाम विजय सिंह था।   हरदौल अपने पिता के साथ युद्ध अभियानों  जाते थे , युद्ध में जाते- जाते उन्हें युद्ध का  ज्ञान हो गया था।   राजा वीर सिंह बुंदेला ने अपनी वृद्धावस्था देखकर अपना सारा राज- पाठ अपने बड़े बेटे जुखार सिंह के नाम कर दिया ,और छोटे बेटे हरदौल को दीवान का पद दे दिया। जब राजा वीर सिंह देव जी की मृत्यु  हो गई तब बडे बेटे जुखार सिंह राजा बन गए।  ज

आरती जय जगदीश हरे

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                                                               🙏 आरती जय जगदीश हरे 🙏                                                                                         ॐ जय जगदीश हरे , स्वामी जय जगदीश हरे।                                          भक्त जनों के संकट , क्षण में दूर करें।                                                          ॐ जय   . .........                                                                                          🙏🙏🙏                                       जो ध्यावे फल पावे , दुःख विनसे मन का।                                         सुख - संपत्ति घर आवे , कष्ट मिटे तन का।                                                          ॐ जय   . .........                                                                                           🙏🙏🙏                                         माता - पिता तुम मेरे , शरण गहूं मैं किसकी।                                           तुम बिन और न दूजा आस करूँ जिसकी।                                                

JAISI DRISHTI VAISHI SRISHTI

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                                                                     जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि                                                    एक बार  अमीर व्यक्ति था उसका नाम राजा था। उसका एक मित्र था जिसका नाम वैभव था।  वह एक व्यापारी था।  जो चन्दन की लकड़ियों का व्यापार करता था।   एक बार वैभव अपने दोस्त राजा से मिलने उसके घर गया।  वैभव को घर पर आया देख राजा के मन में ख्याल आया की कुछ ऐसा किया जाए कि उसकी सारी संपत्ति मेरी हो जाए।  वैभव जब तक उसके पास रहा वह यही सोचता रहा कि किस प्रकार इसकी संपत्ति हड़प ली जाए ,कुछ देर बाद वैभव चला गया।  उसके जाने के बाद राजा को बड़ा दुःख हुआ कि वः अपने दोस्त के बारे में ऐसा कैसे सोच सकता है , आज मेरे मन में ऐसा कलुषित विचार कैसे आया।  वह बड़ा दुखी हुआ ,उसने अपने गुरुजी से यह बात बताई।                                                                   गुरु जी ने कहा मुझे कुछ समय दो मैं तुम्हारी बात का उत्तर दूंगा।  गुरु जी ने किसी तरह वैभव का पता लगाकर उसे अपने पास बुलवाया और उसे अपना शिष्य बना लिया , धीरे-धीरे वैभव को जब गुरु जी पर विश्वास हो गया।  तब उ

LAXMI JI KI ARTI

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                                                                      लक्मी जी की आरती                                          ॐ जय लक्मी माता , मैया जय लक्मी माता।   तुमको निशदिन सेवत , हर विष्णु विधाता।         ॐ जय लक्मी  ...... ......  उमा ,रमा , ब्रम्हाणी ,तुम ही जग माता।   सूर्य , चन्द्रमा ध्यावत , नारद ऋषि गाता।               ॐ जय लक्मी  ...... ...... दुर्गारूप निरंजनी , सुख-सम्पति दाता।   जो कोई तुमको ध्यावत ,ऋद्धि -सिद्धि धन पाता।                     ॐ जय लक्मी  ...... ......  तुम पाताल -निवासिनी , तुम ही शुभ दाता।  कर्म - प्रभाव प्रकाशिनि , भवनिधि की त्राता।                          ॐ जय लक्मी  ...... ......  जिस घर में तुम रहती , तहँ सब सद्गुण आता।   सब संभव हो जाता , मन नहीं घबराता।     ॐ जय लक्मी  ...... ......  तुम बिन यज्ञ न होते , वस्त्र न हो पाता।  खान-पान का वैभव , सब तुमसे आता।             ॐ जय लक्मी  ...... ......  शुभ -गुण -मंदिर - सुंदर , क्षीरोदधि जाता।   रत्न चतुर्दश तुम बिन कोई नहीं पाता।                    ॐ जय लक्मी  ...... ......  महालक्मी जी की आरती , जो

GANESH JI KI ARTI

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                                                        गणेश जी की आरती             जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।   माता जाकी पार्वती पिता महादेव। |            जय गणेश जय  . . . . . . .    🙏🙏 एकदन्त दयावन्त चार भुजाधारी।   माथे पर तिलक सोहे मूसे की सवारी।                जय गणेश जय  . . . . . . .  🙏🙏 अन्धन को आँख देत , कोढ़िन को काया।   बांझन को पुत्र देत , निर्धन को माया।            जय गणेश जय  . . . . . . .  🙏🙏 पान चढ़े फूल चढ़े और चढ़े मेवा।   लढुअन का भोग लगे संत करे सेवा।                जय गणेश जय  . . . . . . .  🙏🙏 सूर श्याम शरण आए सफल कीजे सेवा।   माता जाकी पार्वती पिता महादेवा।              जय गणेश जय  . . . . . . .  🙏🙏 दीनन की लाज रखो , शंभू सुतवारी।  कामना को पूरा करो जग बलिहारी।                       जय गणेश जय  . . . . . . .  🙏🙏

GAU MATA KI KAHANI

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                                                      गाय को माता क्यों कहा जाता है ? दोस्तों ,              मैं आपकी दोस्त आज आपको ये बताने जा रही हूँ की हिन्दू गाय को माता क्यों बोलते है।  1 . गाय माता जिस जगह खड़ी रहकर आनंदपूर्वक चैन की सांस लेती है उस जगह से वास्तु दोष दूर हो जाते है।   २. ऐसा माना जाता है की गाय के गोबर से बने उपलों से रोजाना घर, दूकान और मंदिर परिसर में धुप करने से वातावरण शुद्ध होता है।   3 . काली गाय की पूजा करने से नौ ग्रहों की पीड़ा शांत होती है जो ध्यान पूर्वक धर्म के साथ गाय की सेवा कर ता है उनको शत्रु दोषों से छुटकारा मिलता है और उस पर आने वाली सभी प्रकार की विपदाओं को गौ माता हर लेती है।   4. गाय को इस धरती पर साक्षात देव स्वरुप माना जाता है।  गाय के खुर्र में नागदेवता , गोबर में लक्समी जी ,मूत्र में गंगा जी का वास होता है जबकि गौ माता के एक आँख में सूर्य व दूसरी आँख में चंद्र देव का वास होता है।   5. गाय माता की पूंछ में हनुमान जी का वास होता है किसी व्यक्ति को बुरी नज़र लग जाए तो गौ माता की पूंछ से झाड़ा लगाने पर नज़र उतर जाती है।   6. ऐसा कहा जाता है की कोई

TRUE STORIES

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                                                            मेहनत का फल     हेलो दोस्तों,                    आपका TRUE STORIES BLOGGER में आपका स्वागत है।       आज मैं आपको एक लड़की की सच्ची कहानी बताने जा रही हूँ।  NISHI और नेहा नाम की दो बहनें थी और उनका एक बड़ा भाई था जिसका नाम रोहन था।  वे अपने माता -पिता के साथ रहते थे,  पिता जी टैक्सी चलाते थे और माता जी गृहिणी थी जो बहुत ही सीधी साधी थी।  पिता की कमाई से घर चलाना मुश्किल होता था।      निशि गंभीर स्वाभाव की थी उसे अपने घर की गरीबी देखि नहीं जाती थी ,माँ बाप को अपने बेटे पर अधिक भरोसा था इसीलिए वह अपने बेटियों को हमेशा हेय दृष्टि से देखते थे। धीरे -धीरे दिन बीतते गए।  बीटा ज्यों १५-१६ वर्ष का हुआ उसने गलत संगति पकड़ ली और पढ़ाई लिखाई छोड़ आवारा दोस्तों के साथ रहने लगा। माता-पिता को बहुत दुःख हुआ क्योंकि अब घर की आर्थिक दशा और ख़राब हो गई थी।  जिस बेटे से उम्मीद की थी ,वह तो निकम्मा निकला।  अब बेटियों से तो उन्हें कोई उम्मीद ही नहीं थी बल्कि उनके विवाह के लिए दहेज़ की चिंता में रहने लगे।                निशि समझदार थी , उसने पढाई के साथ

AURAT KA MANN

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                                                           औरत का मन               आज मैं आपको  एक लड़की की  सच्ची कहानी बताने जा रही हूँ। जिसका नाम मीनू  है।  वह पढ़ने में बहुत होशियार थी। घर में तीन बहनो और दो भाइयो में सबसे बड़ी ,इस कारण बचपन से ही घर में जिम्मेदारी ज्यादा थी उसके ऊपर।   मीनू नाम रखा था पापा ने बहुत ही प्यार से लेकिन अब पापा को भी चिंता रहती तीन बेटियों की ,शादी की , इसलिए वह भी अब मीनू पर ध्यान नहीं देते थे ,प्यार नहीं करते थे।   माँ तो सारा दिन काम में इतना व्यस्त रहती की उन्हें भी समय नहीं मिलता की वह मीनू के मन की व्यथा जान सके। बाकि बहन भाइयों से अलग सी रहती थी, मीन ु बचपन से ही कम बोलने वाली संकोची स्वाभाव की थी। कभी भी अपनी बात खुलकर नहीं कह पाती थी जब पढाई का मन हो तभी माँ के साथ काम करवाना पड़ता था।   वह डॉक्टर बनना चाहती थी लेकिन पिता जी के पास इतना पैसा नहीं था की उसे डॉक्टरी पढ़ा सके। फिर मीनू ने नया सपना देखा I.A.S OFFICER बनने का।  खूब मेहनत की। पढ़ाई में जी जान लगाकर उसने B.A पास किया फिर COACHING में जाकर पढ़ना चाहती थी। लेकिन दुर्भाग्य ने आकर उसके रास्त