लाला हरदौल कथा
लाला हरदौल कथा
यह एक सच्ची घटना है जो मध्य प्रदेश के मोरक्षा जिले की है।
मोरक्षा नरेश वीर सिंह देव बुंदेला के सबसे छोटे पुत्र हरदौल का जन्म सावन शुक्ल पूर्णिमा को सन १६०८ ,दिनांक २७ जुलाई को हुआ था। हरदौल के जन्म के कुछ दिनों के बाद उनके माता की मृत्यु गई। तब हरदौल का पालन -पोषण बड़े भाई जुखार सिंह की पत्नी चम्पावती ने किया।
सन 1628 में हरदौल विवाह दुर्गापुर (रतिया ) के दीवान लाखन सिंह परवार हिमांचल कुंवरी के साथ हुआ था। हरदौल के 1630 में एक पुत्र का जन्म हुआ नाम विजय सिंह था। हरदौल अपने पिता के साथ युद्ध अभियानों जाते थे , युद्ध में जाते- जाते उन्हें युद्ध का ज्ञान हो गया था।
राजा वीर सिंह बुंदेला ने अपनी वृद्धावस्था देखकर अपना सारा राज- पाठ अपने बड़े बेटे जुखार सिंह के नाम कर दिया ,और छोटे बेटे हरदौल को दीवान का पद दे दिया। जब राजा वीर सिंह देव जी की मृत्यु हो गई तब बडे बेटे जुखार सिंह राजा बन गए। जुखार सिंह हमेशा युद्ध में व्यस्त रहते थे और लाला हरदौल राजपठ का कार्य देखते थे। जुखार सिंह के मित्र इससे जलते थे , जिसके कारण उनके दोस्तों ने हरदौल को मारने की एक भयानक युक्ति बनाई।
एक दिन जब राजा जुखारु सिंह युद्ध करके वापस आए तब उनके दोस्तों ने हरदौल के खिलाफ राजा भड़काया , उनसे कहा की आपके पीठ पीछे यहां पर बहुत कुछ हो रहा है। राजा जुभारू सिंह ने पूछा - क्या हो रहा है ? तब दोस्तों ने कहा की तुम्हारे भाई हरदौल और तुम्हारी पत्नी चम्पावती के बिच अवैध सम्बन्ध है। यह सुनकर राजा को क्रोध आ गया राजा ने अपनी पत्नी से कहा - यदि तुम्हारे सम्बन्ध सही हैं तो तुम हरदौल को खाने में जह र दे दो। रानी बहुत रोइ और राजा से कहने लगी वह मेरा बेटा है ,बचपन से पाला है। लेकिन राजा के जिद्द के आगे हार गई। हरदौल को जहर दे दिया। हरदौल को पता था कि खाने में जहर है , फिर भी खाना खाया क्योंकि वह भाभी माँ का सम्मान बचाना चाहते थे , हरदौल ने खुशी - खुशी जहर खा लिया और उनकी मृत्यु हो गई।
हरदौल की एक बहन थी उसको पता नहीं था की हरदौल की मृत्यु हो चुकी है। बहन का नाम कुंजावती था। वह अपनी बेटी की शादी का निमंत्रण लेकर ओरछा आई। जहां बड़े भाई राजा जुभार सिंह ने उसका बहुत अपमान किया और कहा की अपने छोटे भाई हरदौल से भात मांगो ,उसकी समाधि राज्य के बाहर बनी हुई है। कुंजावती रोते -रोते हरदौल सिंह की समाधि के पास पहुंच गई और जोर -जोर से रोने लगी कि लाला हरदौल तुमको भात लेके आना होगा , भांजी की शादी में। वह बहुत रोई।
तभी कुंजावती को एक आवाज़ सुनाई दी , बहन मैं भांजी की शादी में भात लेकर अवश्य आऊंगा। जिसके बाद कुंजावती घर आ गई और शादी की तयारी करने लगी। शादी के दिन खूब भात पहुंचा , लोग देखकर आश्चर्य चकित हो गए। लेकिन लाला हरदौल दिखाई नहीं दे रहे थे। कुंजावती की बेटी ने जिद्द की कि मामा साक्षात प्रकट हो , फिर कुंजावती ने लाला हरदौल से प्रार्थना की की भाई आप साक्षात् प्रकट हों। इसके बाद हरदौल प्रकट हुए , लोग देखकर हैरान हो गए। जिसके बाद पुरे गाँव में यह खबर आग की तरह फ़ैल गई। लाला हरदौल ने कहा कि -
मैं सभी बहनो का मान हमेशा रखूँगा।
ये बोलकर अदृश्य हो गए। तभी से यह मान्यता हो गई की जब गाँव में किसी के घर शादी हो तो सबसे पहले लाला हरदौल को निमंत्रण दिया जाता है और कहा जाता है कि आप शादी में आएं।
लाला हरदौल की समाधि पर मंदिर बना हैं और उनकी मूर्ति स्थापित की है। आज भी दूर - दूर से लोग शादी का निमंत्रण देने आते हैं। विशेष तौर से लाला हरदौल सिंह बुंदेलखंड के लोक देवता के रूप में स्थापित हैं। भाभी के पुत्रवत स्नेह के कारण उन्हें लाला बुलाया जाता था। इसीलिए उन्हें जन- मानस लाला हरदौल के नाम से बुलाती है। ओरछा मध्य प्रदेश में उनकी समाधी और मंदिर है जहा पान (बीड़ा) बताशा चढ़ाया जाता है।
यह है लाला हरदौल की कहानी जिनकी मान्यता आज भी बहुत है , कहा जाता है की जिस घर से भी लाला हरदौल जी के लिए निमंत्रण जाता है उसके विवाह में कभी भी अन्न की कमी नहीं होती है।
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