बृहस्पतिवार व्रत कथा
बृहस्पतिवार व्रत कथा प्राचीन काल में भारत में एक राजा राज्य करता था वह बड़ा ही प्रतापी और दानी था। वह नित्य मंदिर में दर्शन करने जाता था तथा ब्राम्हण और गुरु की सेवा करता था। उसके द्वार से कोई भी निराश होक नहीं लौटता था। वह प्रत्येक गुरूवार का व्रत और पूजन करता था। वह गरीबो की सहायता करता था। परन्तु यह सब बाते उसकी रानी को अच्छी नहीं लगती थी। न वह व्रत करती और नहीं किसी को दान में एक पैसा भी किसी को देती थी तथा राजा को भी यह सब करने से मना किया करती थी। एक समय राजा शिकार खेलने वन को गए हुए थे , घर पर रानी और दासी थीं। उस समय गुरु बृहस्पति देव साधु का वेश धारण कर राजा के दरवाजे पर भिक्षा मांगने गए तथा भिक्षा मांगी तो रानी कहने लगी , हे साधु महाराज ! मैं इस दान और पुण्य से तंग आ गई हूँ। मेरे से तो घर का ही कार्य समाप्त नहीं होता। इस कार्य के लिए तो मेरे पति देव ही बहुत हैं। आप ऐसी कृपा करें की यह सब धन नष्ट हो जावे तथा मैं आराम से रह सकूं। साधु बोले -हे देवी! तुम तो बड़ी विचित